ऑनलाइन संस्कृति की जय हो, माताजी-पिताजी के अंतिम संस्कार को इंटरनेट पर देखिये श्मशान में भीड़ करने की जरूरत नहीं है।
शुक्रवार, 5 अगस्त 2011
जब सब लोग जान गए हैं कि हजारों साल से चली आ रही सांस्कृतिक परम्पराओं में अब इंटरनेटीय प्रभाव पड़ रहा है तो उसे सहर्ष स्वीकारना उनकी मजबूरी बन गयी है। अब संस्कृति और इंटरनेट के घालमेल से बनी खिचड़ी का मज़ा आपको न चाहते हुए भी चखना पड़ेगा यानि पिताजी का निधन हो गया और आप हैं कि दिरहम, दीनार, पौंड और डॉलर कमाने के लिये विदेश गए हुए हैं तो बिलकुल परेशान मत होइये । आपकी कमाई में छुट्टी लेकर वापिस अपने देश आ कर टोटा करने का झंझट न हो इसके लिये आपकी संस्कृति के निर्वाह का ठेका अब इंटरनेट ने लिया है। आप जैसे ही किसी की मृत्यु की सूचना पाएं तो तुरंत अपने लैपटॉप को खोल कर बैठ जाएं और यदि मन में आए तो आँसू बहा लें वैसे इंटरनेटीय सभ्यता के दौर में तो अब डॉ.रेहान अन्सारी जैसे भावनाओं के ठेकेदार आपको ये भी करने से रोक देंगे कि मूर्ख प्राणी कुफ़्र-कुफ़्र क्यों खेल रहा है रोना धोना करके । इसलिए बस आप तो देखिये सुदूर विदेश में बैठ कर कि किस तरह माताजी या पिताजी को लोग कंधों पर ले जा रहे हैं और किस तरह दफ़ना या चिता के हवाले कर रहे हैं ।
गौरतलब है कि अब कई एक श्मशानों ने अपनी वेबसाइट्स बना ली हैं जिनमें से ये सबसे पहला गौरव मुंबई के उपनगर बदलापुर के श्मशान को हासिल है जो कि अब आपको आपके अपनों का अंतिम संस्कार वेबसाइट पर लाइव दिखाएगा । अब तक तो मंदिरों की पूजा आदि के बारे में ही इस तरह सुना था लेकिन संस्कृति का निर्वाह इंटरनेट इस तरह करेगा ये सोचा भी न था। आगे देखिए कि क्या बच्चे भी फीमेल की बजाए ई-मेल से पैदा हो पाते हैं या वही सब चलेगा जो आदिम काल से पुराने फैशन का चला आ रहा है।
जय जय भड़ास
1 टिप्पणियाँ:
संस्कृति का बदलाव जिसमें भावनाएं आभासी हो चली हैं लेकिन डॉ.रेहान अन्सारी जैसे लोग इसमें भी कुफ़्र और कफ़्फ़ार का बाजा बजाए पड़े हैं।
जय जय भड़ास
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