नितीश बनाम मोदी, भाजपा बनाम जेडीयू : क्या ये लोकशाही है ????
शनिवार, 15 जून 2013
क्या ये लोकशाही है, गठबंधन लोकशाही का अद्वितीय उदाहरण रहा जिसकी परिणति हमने अटल सरकार देखी। गठबंधन जाहिर है एक साझा कार्यक्रम के बिना नहीं बना होगा, हाँ उसमें अटल जी के केंद्र में रहने के कारण पासंग का अंतर किसी ने ना देखा मगर सबकी अपनी अपनी राजनीति है। मोदी के राजनीति में सर्वधर्म समभाव नहीं तो नितीश की राजनीति का जातिगत एजेंडा बदल जाता है।
हर दल को ये स्वतंत्रता है कि वो अपने दलीय निर्णय ले मगर तब तक जब तक वो अकेले चल रहा है, जब साझीदार हों तो मामला नि:संदेह पेचीदा होगा। नितीश को भाजपा से शिकायत नहीं नितीश को आडवानी से शिकायत नही मोदी मामला भाजपा का मामला है तो पेंच कहाँ और कैसे फंस गया ????
गुजरात बिहार बंगाल आंध्र उत्त्तर प्रदेश सब की अपनी अपनी राजनीति है जहाँ जमीन हर चुनाव में नहीं बल्कि हर साल बदलती खिसकती है, पिछले बिहार चुनाव में मोदी के बिहार प्रवेश पर पाबंदी और भाजपा नेतृत्व तक का सहयोग जाहिर है स्थानीय चुनाव में गठबंधन का मतलब भाजपा और जदयू दोनों जानती रही है और जब गठबंधन के नेतृत्व की बात आती है तो निर्णय एकाकी हो ही नहीं सकता।
आज जदयू और भाजपा गठबंधन समाप्त हो चुका है और इसका आकलन भी होगा मगर सबका पेंच कहीं न कहीं गठबंधन की राजनीति पर एक प्रश्न लगता है कि गठबंधन कब तक और कैसे ? गठबंधन का निर्णय और नेतृत्व कैसे ?
आज जदयू भाजपा गठबंधन टूटने पर सबकी अपनी अपनी राय है किसी की व्यक्तिगत तो किसी की राजनैतिक, किसी के पसंदीदा तो किसी के नापसन्दी और इसका स्पष्ट झलक दिख रहा है कि कल तक जहाँ गल्बहलिया थी वहां आज गाली गलौज तक की नौबत है। क्या गठबंधन निहित स्वार्थ की पूर्ति मात्र है !!!
एनडीए के टूट में शीर्ष नेता या जमीनी कार्यकर्त्ता से इतर हवाई लोगों (जी हाँ हवाई क्यूंकि वेब एक काल्पनिक दुनिया ही है) गठबंधन को ख़तम करने में अपनी अप्रितम योगदान दिया
आज भाजपा माने मोदी हो चूका है जाहिर है एनडीए गठबंधन प्रासागिक नहीं रह जाती।
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