मेडिकल ब्लागिंग करने वालों क्या E.T.G. के बारें में चर्चा करने से डरते हो????

सोमवार, 22 दिसंबर 2008

अब एक तो हिंदी ब्लागर ऊपर से मेडिकल के बारें में लिखने वाला तो भला सोचिये कि कितना गया गुजरा होगा वो चिकित्सक जो प्रेक्टिस वगैरह के नोट छापने के धंधे को छोड़ कर ब्लागिंग के कीचड़ में कूद पड़े। हमारे देश में तो वैसे भी हिंदी कुंठित और गंवार लोगों की भाषा मानी जाती है ऐसे में भला कोई आयुर्वेद के बारे में क्यों लिखे? लिखे भी तो क्या कफ-पित्त-वात का चूतियापा करे? अरे लिखना है तो बड़ी-बड़ी बातें लिखो जैसे कि डॉ.प्रभात और डॉ.प्रवीन लिखते हैं मजाल है कि हमारे जैसा कोई गंवार वहा पहुंच जाए वहां तो टिप्पणी करने वाले भी गधी के दूध से नहा कर आते हैं। हमारे जैसे धुर गंवारों के गुरूदेव हैं डॉ.देशबंधु बाजपेयी जी बेचरऊ ने अपनी जीवन भर की रचनात्मक ऊर्जा समेट कर एक ऊलजुलूल सा अविष्कार कर डाला है जिसे हम इलैक्ट्रो त्रिदोषग्राम(E.T.G.) कहते हैं। इस अविष्कार के बारे में मैने पहले कुछ लाइने लिखी थीं तो शराफत और बौद्धिकता का जिनका ठेका है उनमें से कई जनों के तो पिछवाडे़ में हवन कुंड बन गया, सुलग गई, धुंआ उठने लगा। मैंने बाबा रामदेब के दोहरे मानदंडों के बारे में लिखा था इसी E.T.G. के संदर्भ में......। अब बाबा जी जैसे वणिक सोच और राजनैतिक महत्त्वाकांक्षा रखने वाले प्राणी हमारे जैसे तुच्छ, क्षुद्र और गलीज़ लोगों की बातों पर अगर प्रतिक्रिया भी कर दें तो हम बड़े हो जाएंगे तो बाबाजी चुप्पी साध गए। मैंने अब सोचा कि चलो हर एग्रीगेटर(ब्लागो की जानकारी का संकलक) पर सेहत-स्वास्थ्य के खांचे को घेरे रहने वाले डाक्टरों को उंगली करके देखूं क्या होता है क्या वे E.T.G. के बारे में अपनी अति बौद्धिक संपदा हिंदी के ब्लाग पर इस चीज का जिक्र करते हैं या हरामी राजनेताओं की तरह कन्नी काट कर चुप्पी साध लेते हैं। E.T.G. के बारे में बस इतना ही कहना काफी है कि दुर्भाग्य है ये मेरे अविष्कारक गुरूदेव डॉ.देशबंधु बाजपेयी का कि उन्होंने भारत में जन्म लिया है अगर यही वे अमेरिका या किसी भी पश्चिमी देश में पैदा हुए होते तो साले हरामी स्वास्थ्यमंत्री इस तकनीक को खरीदने के लिये मर रहे होते क्योंकि उस तकनीक की खरीद में करोड़ों का घोटाला करने का मौका जो मिल रहा होता। लेकिन हमारा स्वास्थ्य मंत्री है कि उसे समलैंगिकों के बारे में ज्यादा चिंता है पता नहीं क्या खुद भी उल्टी साइकिल तो नहीं है भगवान ही जाने......।
मैं इस पोस्ट के द्वारा साइबर स्पेस में हिंदी के खांचे में मेडिकल का पुछल्ला पकड़ कर अपनी विद्वता की उल्टियां करने वाले सारे ब्लागरों को गरियाता हूं कि कम से कम तुम तो साहस दिखाओ या बस जीवन का सामाजिक संदर्भ बस यही है कि अपनी ही उंगली सूंघो और कहो कि इसमें जरा ही बदबू नहीं है क्योंकि मैं तो गुलाब और केवड़े के फूल खाता हूं। लिखो वरना थू है तुम्हारी ब्लागिंग पर....।

4 टिप्पणियाँ:

हरभूषण ने कहा…

भाईसाहब आपका क्षोभ और नाराजगी सिस्टम से होना बिलकुल जायज है मै बाजपेयी जी के शोध की विलक्षणता से बहुत प्रभावित हूं।

फ़रहीन नाज़ ने कहा…

मामू ये क्या नाटक है चलो स्वास्थ्य मंत्री और उन अधिकारियों को बताते हैं कि भड़ासी क्या हैं...रोज एक हजार गालियां लिख कर इनकी मादर-फादर करते हैं ई-मेल से ....ठीक है न? क्या बोलते भाई लोग? डा.बाजपेयी जी ग्रेट हैं~
जय जय भड़ास

बेनामी ने कहा…

गुरुदेव,
ब्लोगिंग के नाम पर ये लोग अपने भी बाजार के चवन्नी चाप दवाई दलाल से अलग नही हैं, और आपका कथन सत्य है, जब तक दलाली न हो वो हमारे (नेताओं) लिए बेकाम ही रहता है. बाबा राम देव वो क्षद्म्धारी जीव है जो अपनी महत्वाकांक्षा साधने के लिए कुछ भी कर सकता है, ये साला राजनेताओं को गरियाता है, मगर जब इनके साथ बैठता है तो सभ्यता का जमा पहन कर, अंधे बहरे गूंगे और चूतिये के देश में लोगों को चूतिया बनाना आसान सो बना रहा है अपनी दाढी के बल पर.
देश के सपूत डाक्टर दीनबंधू भी जैसे लोग यहाँ मरने के बाद ही अहमियत बता पाते हैं क्यूँकी तब उनकी कृती को ये चूतिये बेच जो सकते हैं,
जय जय भड़ास

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