जैन धर्म को मानने वाले सचमुच ही पैशाचिक शक्तियों के उपासक हैं

सोमवार, 3 जनवरी 2011

भड़ास के ही मंच पर एक बार लिखा था कि "जिन" और पैशाचिक शक्तियाँ "जिन्न" अलग-अलग हैं और इस बात को शब्दों के खिलवाड़ से किसी जैन ने ही सिद्ध करने की कोशिश करी थी। आजकल अमित जैन को इस्लाम में खामियाँ इस लिये दिखने लगी हैं क्योंकि इस्लाम के जानने वालों ने इनकी राक्षसी शक्तियों को पहचान लिया इस्लामिक किताबों में "जिन"(जिसकी वर्तनी यानि स्पेलिंग होती है जीम के नीचे ज़ेर लगा कर नून, उर्दू जानने वाले इस बात को समझ सकते हैं) कहा गया है। यदि जिन्न लिखना होता है तो नून अक्षर के ऊपर तश्दीद लगाया जाता है। दर असल ये राक्षसों का खिलवाड़ ही है कि वे शब्दों में उलझा कर मानवता को भ्रमित करे रहें। ये जिनदेवताओं की उपासना करने वाले हमेशा से सपना देखते हैं कि दुनिया में जिन शासन हो जाए इसलिये ये हमेशा "जयति जिन शासनम" का नारा लगाते रहते हैं। इनकी धार्मिक सोच में ईश्वर, अल्लाह या गॉड जो कि सर्वशक्तिमान है उसको स्वीकारने की जगह जिनों को धर्म का आधार बनाया गया है। ये है बिना ईश्वर का धर्म........ अब ये धर्म है या अधर्म ये आप सब निश्चित करें।
भारत में जैन के रूप में पहचान लिये जाने वाले असल में राक्षसी और पैशाचिक शक्तियों की उपासना करते हैं। ये चाहते हैं कि संसार में पैशाचिक शक्तियों का राज्य हो जाए। सभी देववंशज मानवों से हाथ जोड़ कर अर्ज है कि ऐसे राक्षसों को पहचान कर इनकी हरकतों से सावधान हो जाएं।
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास

1 टिप्पणियाँ:

लाल कलम ने कहा…

ये अपने अपने विचार हैं की कोई धर्म कैसा है कोई धर्म कैसा है, सभी अपने अपने धर्म को सर्वोपरि बतातें हैं|
परन्तु वास्विक धर्म को कोई नहीं पहचान पाता , सभी आपनी अपनी खिचड़ी पकाने में लगे हैं| धर्म और शिक्षा दोनों को व्योसाय बना दिया है |

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