पैसा मिले तो ये दलाल किस्म के लोग रंडियों का भी विज्ञापन लगा कर एडवर्टाइज़ कर सकते हैं
शुक्रवार, 21 जनवरी 2011
अभी कुछ दिन पहले मुंबई में एक गैर सरकारी संस्था जो मुस्लिम हितों का गाना गाते हुए प्रोफ़ेशनल मुस्लिमों की तरक्की की कोशिश में जुटी है उसने शिक्षा के क्षेत्र में धंधे की अधिक संभावनाएं देखते हुए एक फ़ेस्टिवल का आयोजन करा। कैरियर फ़ेस्टिवल2011 के नाम से तमाम मुसलमान व्यवसायी जुटा लिये गये दुकानें बाँट दी गयी, नोट छप गए इस पूरे कार्यक्रम को आर्थिक सहयोग देने वाली एक कंपनी थी जो कि सोने में इन्वेस्ट कराती है लेन-देन का काम करती है कुल मिला कर है बैंकिंग का धंधा लेकिन भारत सरकार को बेवकूफ़ बनाने का काम कर रही है(जो कि पहले से ही धूर्तों के हाथ में है)।
बच्चों के अच्छे भविष्य के नाम पर कैरियर-कैरियर का बाजा बजा कर इन लोगों ने अंजुमन इस्लाम,मुंबई द्वारा संचालित एक कॉलेज में ग्राउंड ले लिया, हॉल ले लिया लेकिन जब साइबर स्पेस में इनके मीडिया पार्टनर पर नज़र पड़ी तो देखा कि इनके मीडिया पार्टनर तो बिलकुल इनकी ही सोच के चुने हैं, इस वेबसाइट ने कुछ दिन तक इनका डाकटिकट के आकार का विज्ञापन लगा कर रखा लेकिन उससे बीस गुना बड़ा विज्ञापन इस वेबसाइट पर ऐसी वेबसाइट का लगा हुआ है जो कि जीवन में अकेली औरतों के द्वारा जीवन में रंग भरने और जोश जगाने का काम करती है जिसे आप चित्र में देख सकते हैं। पैसा मिले तो ये दलाल किस्म के लोग रंडियों का भी विज्ञापन लगा कर एडवर्टाइज़ कर सकते हैं।
सही है भाई क्या मुस्लिम प्रोफ़ेशनल्स औरतों के धंधे में नहीं हो सकते। अब अगर ये मुस्लिम प्रोफ़ेशनल्स मुनव्वर आपा की उर्दू वेबसाइट लंतरानी पर अपना विज्ञापन देते और उन्हें मीडिया पार्टनर बनाते तो गलत हो जाता आखिर "इनका इस्लाम" औरतों को बाहर आने की तक अनुमति नहीं देता और एक बात और कि विज्ञापन मुफ़्त में होता जिसमें ये मलाई नहीं खा पाते ;)
जय जय भड़ास
2 टिप्पणियाँ:
भाई शम्स आप ऐसा क्यों सोच रहे हैं कि पैसे की बेइंतहा भूख का हिंदू या मुसलमान से कुछ लेना देना है। जो पैसा ईश्वर की बनायी चीज है ही नहीं उसका धर्म से क्या संबंध? ये बात सच है कि लंतरानी पर यदि ये अपना विज्ञापन देते तो मुफ़्त में हो जाता लेकिन इन्हें शायद लंतरानी का मंच छोटा जान पड़ा होगा क्योंकि वो उर्दू में लिखा जाता है और ये वेबसाइट मुसलमानों का भला अंग्रेजी में कर रही है यानि तरक्कीपसंदी का मामला है बाबू......
जय जय भड़ास
शम्स भाई वेश्यावृत्ति भी तो एक व्यवसाय ही है और अगर इन जैसे भले आदमी उसमें दलाली करके या इन बाई लोगों का एडवर्टाइज करके अपने लिये रोटी का इंतजाम कर लेते हैं तो उनके हिसाब से ये बुरा नहीं है ये तो इससे भी नीचे जा सकते हैं आगे चल कर अपनी ही घर की स्त्रियों को भी धंधे पर लगा सकते हैं। बात तो सिर्फ़ पैसा कमाने की है भाई कैसे भी कमाएंगे ये ससुरे इन्हें भले बुरे से क्या लेना देना ये तो प्रोफ़ेशनल लोग हैं
जय जय भड़ास
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