रणधीर सिंह सुमन क्या अब nice लिखना भी भूल गये खटीमा सम्मेलन के बाद???

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

सबको याद होगा कि जब जब भड़ास पर मुद्दों को किसी परिणाम कारक स्थिति में लाने तक का मौका लगा है वो लोग मुँह काला करके भाग जाते है जो विचार-वेश्याएं पहले भड़ास को अपना कोठा समझ कर लाली पाउडर लगा कर यहाँ से अपने लंपट ठरकी दुराचारी शोषक ग्राहकों को आवाज दिया करती थीं चाहे वो गुफ़रान सिद्दिकी हों,अमित जैन हों या रणधीर सिंह सुम न। ये वो लोग रहे जो कि भड़ास पर आकर राजनीति की कबड्डी खेल रहे थे

लेकिन जब इन्हें पटका रगेदा गया तो थोड़ी चूँ-चाँ करी और फिर अपना मुंह काला करके भाग गए। गुफ़रान सिद्दिकी इस्लाम की कट्टरता का गाना गाता था और रणधीर सिंह सुमन साम्यवाद की पिपिहरी फूंकता था अब तो ये गोंद खाकर मुंह चिपका कर बैठ गए हैं। रणधीर सिंह सुमन ने तो मुझे अपने किसी ऐसे प्रतिद्वन्दी की पहचान से जोड़ दिया था जिसने कभी इसको घसीटा होगा लेकिन अब तो ये उसकी पहचान बता कर nice लिखने भी नहीं आ पाता। अमित जैन भी अनूप मंडल के सामने आकर सीधी बात करने से कतरा कर भाग ही जाते हैं और महीनों गायब रहते हैं। ऐसे लोगों के साथ अन्य जगहों पर भी क्या होता है एक उदाहरण सामने पेश कर रहा हूं।
जय जय भड़ास
संजय कटारनवरे
मुंबई

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