एक्ष्पेक्ततिओन्स, ग्रेअटर थे दिस्प्पोइन्त्मेन्त्स….. इसका अर्थ आपको नहीं पता होगा लेकिन हम और डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जानते हैं
शुक्रवार, 30 मार्च 2012
कल बहुत दिनों बहुत दिनों के बाद भड़ास पर आया तो देखा कि डॉ.रूपेश श्रीवास्तव बहन डॉ.दिव्या श्रीवास्तव की रिश्ते के चलते चोटी खींच रहे हैं। हमारे गुरूजी में एक बात है कि वे चोटी भी खींचते हैं तो इसी मंच पर न कि चुप्पे चुप्पे फोन या ई-मेल से, इसका कारण सीधा सा यही है कि वे एकदम पारदर्शी हैं। मैं खूब समझता हूँ डॉ.दिव्या जी के स्वभाव को कि वे गुरूजी की बात से चिढ़ गयी होंगी लेकिन दिव्या जी इस बात को कभी समझ नहीं पाएंगी कि जीवन की इसी पारदर्शी शैली के चलते मनीषा नारायण, आएशा धनानी, मुनव्वर आपा, स्वयं मैं और न जाने कितने ऐसे लोग हैं जो इनसे रिश्ते में जुड़ गये हैं। गुरूजी ने जो भी बताया जताया दिखाया सिखाया है उसके लिये धन्यवाद शब्द बौना है लेकिन दिव्या के ऊपर तो दया आ ही रही है। यदि वो अपने दंभ के खोल से बाहर आ पातीं तो कम से कम पाबला जैसे दुष्टों से बचतीं और एलियन भाषा(एक्ष्पेक्ततिओन्स, ग्रेअटर थे दिस्प्पोइन्त्मेन्त्स) की बजाए हिंदी की सेवा कर पातीं या अंग्रेजी में न लिखना पड़ता यानि कुल जमा ये कि ब्लॉगिंग ठीक से कर पातीं।
जय जय भड़ास
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