डा.रूपेश जी की माता जी की मृत्यु नैसर्गिक नहीं बल्कि अत्यंत क्रूर हत्या थी- भाग 5

सोमवार, 3 जनवरी 2011

इस रहस्यमय नृशंस हत्या के खुलासे की पहली कड़ी- भाग १

जिन्हें ये हत्या मात्र मनगढंत कहानी लग रही है वे इस दूसरी कड़ी को भी पढ़ें- भाग-२

डा.रूपेश जी की माता जी की मृत्यु नैसर्गिक नहीं बल्कि अत्यंत क्रूर हत्या थी- भाग 3
डा.रूपेश जी की माता जी की मृत्यु नैसर्गिक नहीं बल्कि अत्यंत क्रूर हत्या थी- भाग 4


अब तक आप विद्वानों ने हमारे अवतार स्वरूपी तारणहार डॉ.रूपेश श्रीवास्तव जी की माता जी की तंत्र-मंत्र के द्वारा अत्यंत क्रूरतापूर्ण तरीके से कर दी गयी हत्या के बारे में पढ़ रहे थे कि किस प्रकार उस तांत्रिक ने पपीतों में से कैसी-कैसी चीजें निकालीं। तंत्र-मंत्र को दकियानूसी और बेवकूफ़ाना सोच से जोड़ने वाले विद्वानों का अब तक साहस न हुआ कि इस विषय पर अपना मुंह स्पष्ट तौर पर खोलते। अब हम बताते हैं कि तांत्रिक के चले जाने के बाद क्या हुआ क्योंकि ये मामला सीधे ही भड़ास के संचालक से जुड़ा हुआ था जो कि स्वयं तमामोतमाम अंधविश्वासों के खिलाफ़ सीना तान कर खड़े रहते हैं। डॉ.साहब ने बाल्टी में भरे हुए सारे तांत्रिक सामान हड्डियां वगैरह एक एक करके बाहर निकाल कर कैमरे के सामने रखना शुरू कर दिया। जबकि उस तांत्रिक ने हिदायत करी थी कि उस सामान को हाथ न लगाया जाए। खुद उसने उस सारे सामान हड्डियों, बकरे के कटे हुए पैर आदि को पपीतों में से खुले हाथों से न पकड़ कर आक के पत्तों से पकड़ कर निकाला था। लेकिन हमारे भड़ासियों के सिरमौर डॉ.साहब को तो डराया ही नहीं जा सकता तो उन्होंने जिस तरह एक एक सामान बाहर निकाल कर दोबारा रखा उसका भी वीडियो उन्होंने आदरणीय बहन मुनव्वर सुल्ताना आपा को कैमरा पकड़ा कर बनवाया। इस पूरी सामग्री से दिमाग फाड़ देने वाली दुर्गंध उठ रही थी। मुनव्वर सुल्ताना आपा ने कैमरा सम्हाल रखा था और डॉ.साहब ने हर सामग्री का गहराई से निरीक्षण करा। जब कटे हुए पपीतों को बड़ी बारीकी से देखने पर भी ये न समझ आ पाया कि ये सामग्री उनके भीतर किस तरह रखी गयी है क्योंकि नंगी आँखों से तो वो जोड़ दिख नहीं रहा था जिसका संदेह करा जा रहा था कि इन पपीतों को किसी खास ट्रिक से काटा गया है और उनमें सामग्री भर कर चिपका दिया गया है।
इसके बाद अब जरूरत पड़ी आधुनिक तकनीक की सहायता की कि इस मामले को कैसे सिद्ध करा जाए कि ये तांत्रिक की चालाकी है कि हो सकता है उसने पूजा का नाटक करते हुए डॉ.साहब और उनके बड़े भाई की आँखों में धूल झोंक कर किसी तरह ये कारगुजारी कर दी हो। तकनीकी निरीक्षण के लिये डॉ.साहब के एक मित्र ने जो तरीका अपनाया वो ऐसा था जिसे कोई माई का लाल चुनौती नहीं दे सकता। उन्होंने MPEG फ़ॉर्मेट पर बने वीडियो चलचित्र को JPEG फ़ॉर्मेट में बदल कर कई लाख स्थिर चित्रों में तोड़ लिया। अब इन स्थिर चित्रों में से वे कई हजार चित्र छाँटं कर अलग कर लिये जिनमें कि पपीते दिख रहे थे। इन स्थिर चित्रों को विशेष सॉफ़्टवेयर की सहायता से करीब पचास गुणा बड़ा करके स्क्रीन पर देखा गया जिससे कि यदि कितनी भी बारीकी से इन फलों को काटा गया होता वह कटी हुई रेखा अपने मूल आकार से पचास गुणा बड़ी दिख कर उस तांत्रिक की पोल खोल देती लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। तस्वीरों का आकार सौ गुना तक बढ़ा कर देखने पर भी कुछ हाथ न आया। इस तकनीकी निरीक्षण के बाद तो बिना किसी हिचकिचाहट के कहा जा सकता था कि जो भी सामग्री उन पपीतों के भीतर से निकली थी वह उन्हें काट कर अंदर नहीं घुसाई गयी थी।
बड़े भाईसाहब श्री भूपेश जी इस सामग्री को जल्द से जल्द घर से बाहर फेंक देना चाहते थे क्योंकि एक तो वे यह सब देख कर कुछ बौखला से गये थे साथ ही इससे उठने वाली असहनीय दुर्गंध भी परेशान कर रही थी।
आगे जारी रहेगा तंत्र-मंत्र के रहस्य में उलझा ये विचार विमर्श जिसे कि कुछ दुष्ट और चालाक लोग जाहिलपन कह कर दबाना चाह रहे हैं क्योंकि इससे उनके खूंख्वार इरादे पता चलते हैं जिनपर अब तक पर्दा डाल रखा है............
जय नकलंक देव
जय जय भड़ास

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